शुक्रवार, 11 सितंबर 2015

हारना तब आवश्यक हो जाता

हारना तब आवश्यक हो जाता है
जब लङाई  "अपनों से हो"

...और....

जीतना तब आवश्यक हो जाता है
जब लङाई  "अपने आप से  हो"

मंजिल मिले ना मिले ये तो मुकद्दर की बात है!
हम कोशिश भी ना करे. ये तो गलत बात है...

हद-ए-शहर से निकली तो गाँव गाँव चली।
कुछ यादें मेरे संग पांव पांव चली।
सफ़र जो धूप का किया तो तजुर्बा हुआ।
वो जिंदगी ही क्या जो छाँव छाँव चली।।....

कल एक झलक ज़िंदगी को देखा,
वो राहों पे मेरी गुनगुना रही थी,

फिर ढूँढा उसे इधर उधर
वो आँख मिचौली कर मुस्कुरा रही थी,

एक अरसे के बाद आया मुझे क़रार,
वो सहला के मुझे सुला रही थी

हम दोनों क्यूँ ख़फ़ा हैं एक दूसरे से
मैं उसे और वो मुझे समझा रही थी,

मैंने पूछ लिया- क्यों इतना दर्द दिया कमबख़्त तूने,
वो हँसी और बोली-  मैं ज़िंदगी हूँ पगले
तुझे जीना सिखा रही थी।

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