हर बात को छुपाना आता है तुमको , रूठों को मनाना आता है मुझे, रूठे हो तुम ना जाने किस बात पर मुझसे, तो फिर वो बात क्यों नहीं बताते हो तुम मुझसे ?.
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मंगलवार, 15 सितंबर 2015
कहीं अंधेरा तो कहीं शाम होगी
कहीं अंधेरा तो कहीं शाम होगी, मेरी हर खुशी तेरे नाम होगी, कभी माँग कर तो देख हमसे ऐ दोस्त, होंठों पर हँसी और हथेली पर जान होगी..
क्या यही प्यार है
खिड़की से झांकता हूँ मै सबसे नज़र बचा कर
खिड़की से झांकता हूँ मै सबसे नज़र बचा कर बेचैन हो रहा हूँ क्यों घर की छत पे आ कर क्या ढूँढता हूँ जाने क्या चीज खो गई है इन्सान हूँ शायद मोहब्बत हमको भी हो गई.
सोमवार, 14 सितंबर 2015
हिंदी दिवस पर विशेष कविता
बहनों को साथ लेकर चलती है ये हिन्दी।
सुंदर है, मनोरम है, मीठी है, सरल है,
ओजस्विनी है और अनूठी है ये हिन्दी।
पाथेय है, प्रवास में, परिचय का सूत्र है,
मैत्री को जोड़ने की सांकल है ये हिन्दी।
पढ़ने व पढ़ाने में सहज है, ये सुगम है,
साहित्य का असीम सागर है ये हिन्दी।
तुलसी, कबीर, मीरा ने इसमें ही लिखा है,
कवि सूर के सागर की गागर है ये हिन्दी।
वागेश्वरी का माथे पर वरदहस्त है,
निश्चय ही वंदनीय मां-सम है ये हिंदी।
अंग्रेजी से भी इसका कोई बैर नहीं है,
उसको भी अपनेपन से लुभाती है ये हिन्दी।
यूं तो देश में कई भाषाएं और हैं,
पर राष्ट्र के माथे की बिंदी है ये हिन्दी।
पेप्सी बोली सुन कोका कोला !
पेप्सी बोली सुन कोका कोला !
भारत का इन्सान है बहुत भोला।
विदेश से मैं आयी हूँ,
साथ में मौत को लायी हूँ ।
लहर नहीं ज़हर हूँ मैं,
गुर्दों पर गिरता कहर हूँ मैं ।
मेरी पी.एच. दो पॉइन्ट सात,
मुझ में गिरकर गल जायें दाँत ।
जिंक आर्सेनीक लेड हूँ मैं,
काटे आतों को, वो ब्लेड हूँ मैं ।
हाँ दूध मुझसे सस्ता है,
फिर पीकर मुझको क्यों मरना है ।
540 करोड़ कमाती हूँ,
विदेश में ले जाती हूँ ।
मैं पहुँची हूँ आज वहाँ पर,
पीने को नहीं पानी जहाँ पर ।
छोड़ो नकल अब अकल से जीयो,
और जो कुछ पीना संभल के ही पीयो ।
बच्चों को यह कविता सुनाओ,
स्वदेशी अपनाओ, देश बचाओ ॥
(इसको आगे भेजते जाइये,
भारत के भविष्य को संवारिये ॥)
पानी से तस्वीर
पानी से तस्वीर
कहा बनती है,ख्वाबों से तकदीर
कहा बनती है,किसी भी रिश्ते को सच्चे दिल से निभाओ,ये जिंदगी फिर वापस कहा मिलती हैकौन किस से चाहकर दूर होता है,हर कोई अपने हालातों से मजबूर होता है,
हम तो बस
इतना जानते हैं...हर रिश्ता "मोती" और
हर दोस्त "कोहिनूर" होता है।।।
रविवार, 13 सितंबर 2015
'Daru Bhakti Geet'
'Daru Bhakti Geet'
ऐ दारु तेरे बन्दे हम , ऐसे हो हमारे करम
देसी पर चले , विश्की से हिले
ताकि पीते रहे रेड रम
ऐ दारु तेरे बन्दे हम ............... ........|| 1 ||
ये नशा हैं घना छा रहा
मेरा सर भी चकरा रहा
ले सुट्टे के धुंवे , चढने के लिए
ताकि झूमते रहे सारे हम
ऐ दारु तेरे बन्दे हम ............... ........|| 2 ||
ये टेबल क्यूँ हिल हैं रहा
मेरा दारु हैं कौन पी रहा
ये धरती हिले , हम जमीं पे गिरे
ताकि भूलते रहे सारे गम
ऐ दारु तेरे बन्दे हम ............... .......
देसी पर चले , विश्की से हिले
ताकि पीते रहे रेड रम
ऐ दारु तेरे बन्दे हम ............... ........|| 3 ||
सर्वे भवन्तू सुखिनम..........................
शनिवार, 12 सितंबर 2015
मजबूरिया होती है महान लोगो के जीवन में
मजबूरिया होती है महान लोगो के जीवन में
नहीं तो राम वनवास में
कृष्ण कारावास में
ओर मैं रसोई में क्यूँ जाती
चुनींदा शेर
कुछ चुनींदा शेर पढीये,......
बहूत गेहराई है इनमें।
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बिना लिबास आए थे इस जहां में,
बस एक कफ़न की खातिर,
इतना सफ़र करना पड़ा....!!!!
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समय के एक तमाचे की देर है प्यारे,
मेरी फ़क़ीरी भी क्या,
तेरी बादशाही भी क्या....!!!!
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जैसा भी हूं अच्छा या बुरा अपने लिये हूं,
मै खुद को नही देखता औरो की नजर से....!!!
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नींद आए या ना आए, चिराग बुझा दिया करो,
यूँ रात भर किसी का जलना, हमसे देखा नहीं जाता....!!!!
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मोबाइल चलाना जिसे सिखा रहा हूँ मैं,
पहला शब्द लिखना उसने मुझे सिखाया था....!!!!
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यहाँ हर किसी को, दरारों में झाकने की आदत है,
दरवाजे खोल दो, कोई पूछने भी नहीं आएगा....!!!!
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"तू अचानक मिल गई तो कैसे पहचानुंगा मैं,
ऐ खुशी.. तू अपनी एक तस्वीर भेज दे....!!!!
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"इसी लिए तो बच्चों पे नूर सा बरसता है,
शरारतें करते हैं, साजिशें तो नहीं करते....!!!!
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महँगी से महँगी घड़ी पहन कर देख ली,
वक़्त फिर भी मेरे हिसाब से कभी ना चला ...!!"
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युं ही हम दिल को साफ़ रखा करते थे ..
पता नही था की, 'किमत चेहरों की होती है!
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पैसे से सुख कभी खरीदा नहीं जाता
और दुःख का कोई खरीदार नहीं होता।"
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मुझे जिंदगी का इतना तजुर्बा तो नहीं,
पर सुना है सादगी में लोग जीने नहीं देते
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ऐ बारिश जरा खुलकर बरस, ये क्या तमाशा है....!!
इतनी रिमझिम तो मेरी आँखों से
रोज होती है...!!!!
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उदासियों की वजह तो बहुत है जिंदगी में, पर बेवजह खुश रहने
का मजा ही कुछ और है... ..
बहुत साल बाद दो दोस्त रास्ते में मिले
बहुत साल बाद दो दोस्त रास्ते में मिले .
धनवान दोस्त ने उसकी आलिशान गाड़ी पार्क की और
गरीब मित्र से बोला चल इस गार्डन में बेठकर बात करते है .
चलते चलते अमीर दोस्त ने गरीब दोस्त से कहा
तेरे में और मेरे में बहुत फर्क है .
हम दोनों साथ में पढ़े साथ में बड़े हुए
मै कहा पहुच गया और तू कहा रह गया ?
चलते चलते गरीब दोस्त अचानक रुक गया .
अमीर दोस्त ने पूछा क्या हुआ ?
गरीब दोस्त ने कहा तुझे कुछ आवाज सुनाई दी?
अमीर दोस्त पीछे मुड़ा और पांच का सिक्का उठाकर बोला
ये तो मेरी जेब से गिरा पांच के सिक्के की आवाज़ थी।
गरीब दोस्त एक कांटे के छोटे से पोधे की तरफ गया
जिसमे एक तितली पंख फडफडा रही थी .
गरीब दोस्त ने उस तितली को धीरे से बाहर निकला और
आकाश में आज़ाद कर दिया .
अमीर दोस्त ने आतुरता से पुछा
तुझे तितली की आवाज़ केसे सुनाई दी?
गरीब दोस्त ने नम्रता से कहा
" तेरे में और मुझ में यही फर्क है
तुझे "धन" की सुनाई दी और मुझे "मन" की आवाज़ सुनाई दी .
"यही सच है "
.इतनी ऊँचाई न देना प्रभु कि,
धरती पराई लगने लगे l
इनती खुशियाँ भी न देना कि,
दुःख पर किसी के हंसी आने लगे ।
नहीं चाहिए ऐसी शक्ति जिसका,
निर्बल पर प्रयोग करूँ l
नहीं चाहिए ऐसा भाव कि,
किसी को देख जल-जल मरूँ
ऐसा ज्ञान मुझे न देना,
अभिमान जिसका होने लगे I
ऐसी चतुराई भी न देना जो,
लोगों को छलने लगे ।
: खवाहिश नही मुझे
मशहुर होने की।
आप मुझे पहचानते हो
बस इतना ही काफी है।
अच्छे ने अच्छा और
बुरे ने बुरा जाना मुझे।
क्यों की जीसकी जीतनी
जरुरत थी उसने उतना ही
पहचाना मुझे।
ज़िन्दगी का फ़लसफ़ा
भी कितना अजीब है,
शामें कटती नहीं, और साल
गुज़रते चले जा रहे हैं....!
एक अजीब सी
दौड़ है ये ज़िन्दगी,
जीत जाओ तो कई
अपने पीछे छूट जाते हैं,
और हार जाओ तो अपने
ही पीछे छोड़ जाते हैं।.....
Being human
वक़्त आपका है, चाहे तो सोना बना लो
वक़्त आपका है,
चाहे तो सोना बना लो।
और चाहे तो सोने में गुज़ार दो...!!
पसीने की स्याही से जो लिखते हैं अपने ईरादो को, उनके मुकद्दर के पन्नें कभी कोरे नहीं होते!!
जो हँस रहा है, उसे दर्द ने पाला होगा.....
जो चल रहा है, उसके पाँव में छाला होगा.
बिना संघर्ष के इन्सांन चमक नही सकता.
जो जलेगा उसी दिए में , उजाला होगा.
" दर्द "
सभी इंसानो मे है
मगर ...
कोई दिखाता है तो ...
कोई छुपाता है .....
" हमसफर "
सभी है मगर ...
कोई साथ देता है तो ...
कोई छोड देता है .....
" प्यार "
सभी करते है मगर ...
कोई दिल से करता है तो ...
कोई दिमाग सें करता है
" दोस्ती "
सभी करते है मगर ...
कुछ लोग निभाते है ..
कुछ लोग आजमाते है
" रिश्ता "
कई लोगों से होता है , मगर ...
कोई प्यार से निभाता है तो ...
कोई नफरत से निभाता है ..
" अहसास "
सबको होता है मगर ...
कोई मेहसूस करता है तो ...
कोई समज नही पाता .
" जिंदगी "
सभी जीते है , मगर ...
कोई सबकुछ आने के बाद भी दुखी रहते है ,
तो कोई लुटाके खुश रहते है .
नफ़रतो के इस दौर मे..
चार लोगो से रिश्ता बना के रखना...
सुना है लाश को
शमशान तक दौलत नहीं ले जाती...
शुक्रवार, 11 सितंबर 2015
मेरी पत्नी शिक्षक नही
एक पति की कलम से....
"मेरी पत्नी शिक्षक नही,
पर बच्चों की सबसे बड़ी गुरु वही है ।
वो चिकित्सक भी नही,
पर हमारे हर मर्ज का इलाज है उसके पास।
वो एम.बी.ए. भी नही,
पर घर/बाहर का मेनेजमेन्ट जानती है बखूबी ।
वो गणित मे कमजोर थी,
फिर भी दुखों का घटाव और खुशियों का जोड़ गुणा जाने कैसे करती थी..?
उसके पास कोई डिग्री नही,
पर लगता है उससे बड़ा कोई संस्थान नही।
ऎसा संस्थान जहाँ
बच्चों का हर "डाटा ""फीड " है,
मुझ तक हर सूचना वहीं से आती है।
मैं अपने पिता भरम होने का गर्व करूं,
तब तक मानो वह सृष्टि ही रच आती है।
dedicated to all women
हास्य कविता-
-हास्य कविता-
मुश्किल है अपना मेल प्रिये,
----ये प्यार नहीं है खेल प्रिये,
तुम एम.ए. फर्स्ट डिवीजन हो,
----मैं हुआ मैट्रिक फेल प्रिये।
तुम फौजी अफसर की बेटी,
----मैं तो किसान का बेटा हूँ,
तुम रबड़ी खीर मलाई हो,
----मैं तो सत्तू सपरेटा हूँ।
तुम ए.सी. घर में रहती हो,
----मैं पेड़ के नीचे लेटा हूँ,
तुम नई मारूति लगती हो
----मैं स्कूटर लेम्ब्रेटा हूँ।
इस तरह अगर हम छुप छुप,
-----कर आपस में प्यार बढाएंगे,
तो एक रोज़ तेरे डैडी
----अमरीश पुरी बन जाएंगे।
सब हड्डी पसली तोड़,
----मुझे भिजवा देंगे वो जेल प्रिये,
मुश्किल है अपना मेल प्रिये,
----ये प्यार नहीं है खेल प्रिये।
तुम अरब देश की घोड़ी हो,
----मैं हूँ गधे की नाल प्रिये,
तुम दीवाली का बोनस हो,
----मैं भूखों की हड़ताल प्रिये।
तुम हीरे जड़ी तश्तरी हो,
----मैं एल्युमिनियम का थाल प्रिये,
तुम चिकन, सूप, बिरयानी हो,
----मैं कंकड़ वाली दाल प्रिये।
तुम हिरन चौकड़ी भरती हो,
----मैं हूँ कछुए की चाल प्रिये,
तुम चन्दन वन की लकड़ी हो,
----मैं हूँ बबूल की छाल प्रिये।
मैं पके आम सा लटका हूँ,
----मत मारो मुझे गुलेल प्रिये,
मुश्किल है अपना मेल प्रिये,
----ये प्यार नहीं है खेल प्रिये।
मैं शनिदेव जैसा कुरूप,
----तुम कोमल कंचन काया हो,
मैं तन से, मन से कंगला हूँ,
----तुम महाचंचला माया हो।
तुम निर्मल पावन गंगा हो,
----मैं जलता हुआ पतंगा हूँ,
तुम राजघाट का शान्ति मार्च,
----मैं हिन्दू-मुस्लिम दंगा हूँ।
तुम हो पूनम का ताजमहल,
----मैं काली गुफा अजन्ता की,
तुम हो वरदान विधाता का,
----मैं गलती हूँ भगवन्ता की।
तुम जेट विमान की शोभा हो,
----मैं बस की ठेलमपेल प्रिये,
मुश्किल है अपना मेल प्रिये,
----ये प्यार नहीं है खेल प्रिये।
तुम नई विदेशी मिक्सी हो,
----मैं पत्थर का सिलबट्टा हूँ,
तुम ए.के. सैंतालिस जैसी,
----मैं तो इक देसी कट्टा हूँ।
तुम चतुर राबड़ी देवी सी,
----मैं भोला-भाला लालू हूँ,
तुम मुक्त शेरनी जंगल की,
----मैं चिड़ियाघर का भालू हूँ।
तुम व्यस्त सोनिया गाँधी सी,
----मैं अडवाणी सा खाली हूँ,
तुम हँसी माधुरी दीक्षित की,
----मैं पुलिसमैन की गाली हूँ।
गर जेल मुझे हो जाए तो,
----दिलवा देना तुम बेल प्रिये,
मुश्किल है अपना मेल प्रिये,
----ये प्यार नहीं है खेल प्रिये।
मैं ढाबे के ढांचे जैसा,
----तुम पाँच सितारा होटल हो,
तुम चित्रहार का मधुर गीत,
----मैं कृषि दर्शन की झाड़ी हूँ,
तुम विश्व सुंदरी सी महान,
----मैं ठेलिया छाप कबाड़ी हूँ।
तुम एप्पल का मोबाइल हो,
----मैं टेलीफोन वाला चोंगा,
तुम मछली मानसरोवर की,
----मैं सागर तट का हूँ घोंघा।
दस मंजिल से गिर जाऊँगा,
----मत आगे मुझे ढकेल प्रिये,
मुश्किल है अपना मेल प्रिये,
----ये प्यार नहीं है खेल प्रिये।
तुम जयाप्रदा की साड़ी हो,
----मैं शेखर वाली दाढी हूँ,
तुम सुषमा जैसी विदुषी हो,
----मैं लल्लू लाल अनाड़ी हूँ।
तुम जया जेटली सी कोमल,
----मैं सिंह मुलायम सा कठोर,
तुम हेमा मालिनी सी सुन्दर,
----मैं बंगारू की तरह बोर।
तुम सत्ता की महारानी हो,
----मैं विपक्ष की लाचारी हूँ,
तुम हो ममता जयललिता सी,
----मैं क्वाँरा अटल बिहारी हूँ।
तुम संसद की सुन्दरता हो,
----मैं हूँ तिहाड़ की जेल प्रिये,
मुश्किल है अपना मेल प्रिये,
----ये प्यार नहीं है खेल प्रिये ।
वाकई
बहुत ही मुश्किल है,
अपना मेल प्रिये..।
रोज तारीख बदलती है,
रोज तारीख बदलती. है,
रोज. दिन. बदलते. हैं....
रोज. अपनी. उमर. भी बदलती. है.....
रोज. समय. भी बदलता. है...
हमारे नजरिये. भी. वक्त. के साथ. बदलते. हैं.....
बस एक. ही. चीज. है. जो नहीं. बदलती...
और वो हैं "हम खुद"....
और बस ईसी. वजह से हमें लगता है. कि. अब "जमाना" बदल गया. है........
किसी शायर ने खूब कहा है,,
रहने दे आसमा. ज़मीन कि तलाश. ना कर,,
सबकुछ। यही। है, कही और तलाश ना कर.,
हर आरज़ू पूरी हो, तो जीने का। क्या। मज़ा,,,
जीने के लिए बस। एक खूबसूरत वजह। कि तलाश कर,,,
ना तुम दूर जाना ना हम दूर जायेंगे,,
अपने अपने हिस्से कि। "दोस्ती" निभाएंगे,,,
बहुत अच्छा लगेगा ज़िन्दगी का ये सफ़र,,,
आप वहा से याद करना, हम यहाँ से मुस्कुराएंगे,,,
क्या भरोसा है. जिंदगी का,
इंसान. बुलबुला. है पानी का,
जी रहे है कपडे बदल बदल कर,,
एक दिन एक "कपडे" में ले जायेंगे कंधे बदल बदल कर,,
सफर का मजा लेना हो तो साथ में सामान कम रखिए
"सफर का मजा लेना हो तो साथ में सामान कम रखिए
और
जिंदगी का मजा लेना हैं तो दिल में अरमान कम रखिए !!
तज़ुर्बा है मेरा.... मिट्टी की पकड़ मजबुत होती है,
संगमरमर पर तो हमने .....पाँव फिसलते देखे हैं...!
जिंदगी को इतना सिरियस लेने की जरूरत नही यारों,
यहाँ से जिन्दा बचकर कोई नही जायेगा!
जिनके पास सिर्फ सिक्के थे वो मज़े से भीगते रहे बारिश में ....
जिनके जेब में नोट थे वो छत तलाशते रह गए...
चाँद की बस्ती में काफ़िला सितारों का मिले
चाँद की बस्ती में काफ़िला सितारों का मिले
उठा दो जहाँ पलकें मौसम बहारों का मिले
दुनियाँ की भीड़ थी और हम आप से मिले
तक़दीर से साथ ऐसे रहगुजारों का मिले
रहेगा मुंतज़िर तेरा पत्ता पत्ता इस चमन का
हमेशा की तरहा कल भी हाथ सहारों का मिले
टकराती हैं लहरों से कश्ती-ए-ज़िंदगी मगर
आप की तरह हमें भी साथ किनारों का मिले
उतर गई आप की ख़ुश्बू हर कली हर फूल में
खुदा करे की आपको भी साथ हज़ारों का मिले
नई रुत नये साज़ नया मंज़र मुबारक हो तुम्हें
समाँ ज़िंदगी भर खूबसूरत नज़ारों का मिले
उजालों की मंज़िल आप सच की इबारत आप
मुजको भी रब्बा पता उन गलियारों का मिले
गदंगी देखने वालो की नज़रों में होती है...
क्या खूब कहा है किसी ने :-
गदंगी देखने वालो की नज़रों में होती है...
वरना कचरा बीनने वालों को तो उसमें भी रोटी दिखती है...!!!
सावन आया हे सखी, हरे हूए सब बाग।
विरह-वेदना
दोहा
सावन आया हे सखी, हरे हूए सब बाग।
पिव मेरा परदेश में, बैठी कोसुं भाग।।
तन में तुम बिन साजना, बिरहन उठे हिलोर।
पिव दर्शन कब पाऊंगी, सोचत हो गयी भोर।।
बिरहन तरसे सेज पर, अंगना बरसे मेह।
होङा होङी कर रहे, इत सावन उत देह।।
परबत हरियाली भई, मस्त भये सब मोर।
बिरहन राह निहारती, कब आयें चितचोर।।
सावन आया हे सखी, पीव पुकारे गात।
विष जैसी लागै बुरी, बिन पिव के बरसात।।
हारना तब आवश्यक हो जाता
हारना तब आवश्यक हो जाता है
जब लङाई "अपनों से हो"
...और....
जीतना तब आवश्यक हो जाता है
जब लङाई "अपने आप से हो"
मंजिल मिले ना मिले ये तो मुकद्दर की बात है!
हम कोशिश भी ना करे. ये तो गलत बात है...
हद-ए-शहर से निकली तो गाँव गाँव चली।
कुछ यादें मेरे संग पांव पांव चली।
सफ़र जो धूप का किया तो तजुर्बा हुआ।
वो जिंदगी ही क्या जो छाँव छाँव चली।।....
कल एक झलक ज़िंदगी को देखा,
वो राहों पे मेरी गुनगुना रही थी,
फिर ढूँढा उसे इधर उधर
वो आँख मिचौली कर मुस्कुरा रही थी,
एक अरसे के बाद आया मुझे क़रार,
वो सहला के मुझे सुला रही थी
हम दोनों क्यूँ ख़फ़ा हैं एक दूसरे से
मैं उसे और वो मुझे समझा रही थी,
मैंने पूछ लिया- क्यों इतना दर्द दिया कमबख़्त तूने,
वो हँसी और बोली- मैं ज़िंदगी हूँ पगले
तुझे जीना सिखा रही थी।
वक़्त से लड़कर जो अपनी तकदीर बदल दे,
वक़्त से लड़कर जो अपनी तकदीर बदल दे, इंसान वही जो हाथों की लकीर बदल दे, कल क्या होगा कभी ना सोचो, क्या पता कल खुद अपनी तस्वीर बदल दे !
जिन्दगी में अगर कोई तुमसे यह पूछे कि क्या खोया और क्या पाया...
जिन्दगी में अगर कोई तुमसे यह पूछे कि क्या खोया और क्या पाया...
तो सीना तान के फुल कॉन्फिडेंस के साथ कहना:
कि जो गाज़र के हलवे में डालते हैं, वह खोया है,
और
जो सलीम भाईजान की दुकान पर मिलता वो है पाया।
रात को 1 बजे डॉक्टर को फोन
एक लङका रात को 1 बजे
डॉक्टर को फोन लगाता है
.
.
.
लङका - डॉक्टर साब
मुझे नीँद न आने की
बीमारी है
डॉक्टर - तो साले इसे फैला
क्यो रहा है।
लालू चाचा दूर के !
Current situation of Bihar
लालू चाचा दूर के !
चारा खाऐं चूर के !!
नितीश को दिया थाली में !
समधी को दिया प्याली में !!
समधी गऐं रूठ !
गठबंधन गया टूट !!
सफर का मजा लेना हो तो साथ में सामान कम रखिए
Nice lines :
"सफर का मजा लेना हो तो साथ में सामान कम रखिए
और
जिंदगी का मजा लेना हैं तो दिल में अरमान कम रखिए !!
तज़ुर्बा है मेरा.... मिट्टी की पकड़ मजबुत होती है,
संगमरमर पर तो हमने .....पाँव फिसलते देखे हैं...!
जिंदगी को इतना सिरियस लेने की जरूरत नही यारों,
यहाँ से जिन्दा बचकर कोई नही जायेगा!
जिनके पास सिर्फ सिक्के थे वो मज़े से भीगते रहे बारिश में ....
जिनके जेब में नोट थे वो छत तलाशते रह गए...
बुधवार, 9 सितंबर 2015
केन्द्रीय विद्यालय vs राजस्थानी स्कूल..
"केन्द्रीय विद्यालय vs राजस्थानी स्कूल......"
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तू चकाचक चमकती इमारत
मैं चार कमरों का घोंसला सरकारी...
तेरे वाशरूम का पुराना दर्पण
मेरे आफिस के कांच पर है भारी...
तेरे चिकने आंगन रंगीन दीवारे
मैं बारिश में टपकती टपारी...
तू सजी दुल्हन सी शहर की
मैं जैसे गांव की विधवा नारी...
बच्चे तेरे सब गंभीर, है आज्ञाकारी
मेरे चंचल चित्त, है मस्ती की भरमारी...
तेरी हर कक्षा में पढ़ाते, विषय के प्रभारी
मेरे तीन के जिम्मे, हर स्कूल सरकारी ...
तेरे शिक्षक बनते जा रहे, विशेषज्ञ विषयकारी
मेरे वाले करते काम, सरकार के हर प्रकारी
तेरे शिक्षक निडर स्वतंत्र, रखते पूरी तैयारी
मेरे वालो पर तो छायी, आदेशों की महामारी...
तेरे वाले चिंतामुक्त, है सब कर्मचारी
मेरे वाले पीड़ित, सन् बारह के सरकारी...
तेरे गुरूजन है नये, बदलते हर बारी
मेरे वाले जमे है युं, जमाईं हो सरकारी ...
तू चलती निष्पक्ष, है बिना विकारी
मेरे से बलात् करते, नेतागण-अधिकारी...
तू दौड़ती जा रही, जैसे मैराथन फर्राटादारी
मैं बुढियाती जा रही, जैसे कोई बे-मारी...
तू खिलखिलाती सी, तुझपे सब बलिहारी
मैं तरस सी गयी, कहाँ है मेरे कान्हा अदाकारी...
तू तो डोमिनोज की पिज्जा सी
मैं मिड-डे-मील की तरकारी...
तेरी रानी है इरानी, तीखी सी करारी
मेरा राजा है देवनानी, कोढ़ की बीमारी
बढ़ता जाये ये रोग, खुजाते जितनी बारी..
हँसकर जीना दस्तूर है ज़िंदगी का
हँसकर जीना दस्तूर है ज़िंदगी का;
एक यही किस्सा मशहूर है ज़िंदगी का;
बीते हुए पल कभी लौट कर नहीं आते;
यही सबसे बड़ा कसूर है ज़िंदगी का।
जिंदगी के हर पल को ख़ुशी से बैठाओ;
रोने का टाइम कहां, सिर्फ मुस्कुराओ;
चाहे ये दुनिया कहे पागल आवारा;
बस याद रखना "जिंदगी ना मिलेगी दोबारा"।
मंगलवार, 8 सितंबर 2015
बेचारे मर्द ...
बेचारे मर्द ...
जब जन्म लेते है
तो बधाइयां माँ को मिलती है
, शादी होती है
तो तारीफ़ और उपहार दुल्हन को मिलते है ,
और जब मर जाते है
तो बीमा की रकम बीबी ले जाती है
जो मुस्कुरा रहा है,
जो मुस्कुरा रहा है,
उसे दर्द ने पाला है
जो चल रहा है,
उसके पाँव में छाला है
संघर्ष ही है
इंसानी फितरत
जलाने पर ही होता
दीये में उजाला है..!
मजबूरिया होती है महान लोगो के जीवन में
मजबूरिया होती है महान लोगो के जीवन में
नहीं तो राम वनवास में
कृष्ण कारावास में
ओर मैं कौलेज में क्यों जाता ..
चंद फासले ज़रूर रखिये
चंद फासले ज़रूर रखिये हर रिश्ते के दरमियान,
बदलने वाले बेहद अज़ीज़ हुआ करते हैं!
अति का भला न बोलना
अति का भला न बोलना, अति की भली न चूप,
अति का भला न बरसना, अति की भली न धूप।
अर्थ : न तो अधिक बोलना अच्छा है, न ही जरूरत से ज्यादा चुप रहना ही ठीक है. जैसे बहुत अधिक वर्षा भी अच्छी नहीं और बहुत अधिक धूप भी अच्छी नहीं है.
शनिवार, 5 सितंबर 2015
युग निर्माता शिक्षक तेरी, दूरदृष्टि ना घटने पाए।।
सोचो उस दिन देश का, होगा कैसा हाल।
शिक्षक ने गर छोड़ दी, नेकनियति की चाल।।
सतयुग से कलियुग तक देखो, ये इतिहास गवाही देता।
शिक्षक हरदम देता रहता, बदले में कब कुछ भी लेता।।
अपने शिष्यों के अंतस में, जिसकी छवि अभिराम है।
ऐसे शिक्षक के चरणों में, कोटि-कोटि प्रणाम है।।
सच को सच कहने की हिम्मत, जो रखता है वह शिक्षक है।
झूठ-कपट से सच्ची नफरत, जो रखता है वह शिक्षक है।।
संस्कारों की फसल उगाता, यह धरती का लाल अनूठा,
पतझड़ में बासंती फितरत, जो रखता है वह शिक्षक है।।
जन्मभूमि के आगे जिसने, स्वर्णमयी लंका ठुकराई।
मर्यादा पुरुषोत्तम को ऐसी, मर्यादा किसने सिखलाई ?
अर्जुन के गांडीव धनुष में, किसका हूनर बोल रहा था।
किसके कारण वीर शिवा, मुगलों की ताकत तोल रहा था।।
चंद्रगुप्त के पराक्रम ने, किसके कारण अर्श छुआ ?
गुरु गोविंदसिंह किस शक्ति से, वीरों का आदर्श हुआ ?
कभी अहिंसा की परिभाषा, को समझाने शिवि बना।
अज्ञान तमस को दूर भगाने, कभी ज्ञान का रवि बना।।
बना कन्हैया कभी गगन से, चांद खिलौना लेने मचला।
कभी विवेकानंद विश्व में, धर्म-ध्वजा फहराने निकला।।
तू है विश्वामित्र, राम की मर्यादा में बसता तू।
तू संदीपनि मनमोहन की, नरलीला में हंसता तू।।
तू द्रोण पांडु अर्जुन के, कौशल का करतार रहा।
जामदग्न सुत रूप तू ही, राधेय कर्ण का वार रहा।।
परशुराम बन तू ही भीष्म के, भीषण प्रण की धार बना।
रामानंद कबीरा की तू, साखी का शृंगार बना।
तू चाणक्य चंद्रगुप्त को, न्याय नीति का पाठ पढाता।
तू समर्थ गुरु रामदास है, वीर शिवा का भाग्य प्रदाता।।
मीरां के हरजस भजनों का, मर्म तू ही रैदास रहा।
वल्लभ बन तू सूरदास की, आँखों का उजियास रहा।।
विवेकानंद के ज्ञान सूर्य का, तेज परमहंस है तू ही।
तानसेन की स्वरलहरी का, नाद मौहम्मद गौस तू ही।।
तू निजामुद्दीन औलिया, खुसरो की खालिस जनभाषा।
नरहरिदास तू ही गोसांई, तुलसी की अनुपम अभिलाषा।।
पर परिवर्तन की आँधी में, ज्ञानदीप कुछ बुझे-बुझे हैं।
शंका-आशंका से घिरकर, उन्नत मस्तक झुके-झुके हैं।।
प्रगतिपथ पर बढ़ने वाले, तेज कदम कुछ रुके-रुके हैं।
इसीलिए युवा भारत क,े कर्णधार कुछ थके-थके हैं।।
फिर भी आशा का केंद्र बिंदु है, शिक्षक तूं ही आज तलक।
विश्वास पात्रता का धारक है, शिक्षक तूं ही आज तलक।।
नन्हें-मुन्नों के सपनों में, तेरा ही चित्र खिंचा रहता।
युवा दिल की धड़कन में भी, तेरा ही भाव भरा रहता।।
अभिभावक की अभिलाषा, आशा और बड़ा विश्वास तू ही।
बच्चों के खातिर मात-पिता और, भ्रात-सखा सब खास तू ही।।
तेरा नाम घरों में भी, अनुशासन कायम रखता है।
तुझसे शिक्षा ले सैनिक, वो मातृभूमि हित मरता है।।
भले समय की आंधी सबकी, आँखों पे भारी पड़ जाए।
पर युग निर्माता शिक्षक तेरी, दूरदृष्टि ना घटने पाए।।