शुक्रवार, 4 सितंबर 2015

दोस्त बनाता हूँ

रहता हूं किराये की काया में...

रोज़ सांसों को बेच कर किराया चूकाता हूं....

मेरी औकात है बस मिट्टी
जितनी...

बात मैं महल मिनारों की कर जाता हूं...

जल जायेगी ये मेरी काया ऐक दिन...

फिर भी इसकी खूबसूरती
पर इतराता हूं....

मुझे पता है मैं ख़ुद  के सहारे  श्मशान तक भी ना जा सकूंगा...

इसीलिए जमाने में दोस्त बनाता हूँ

गुरुवार, 3 सितंबर 2015

जहाँ रोज घरघर होती रहती है

जहाँ रोज घरघर होती रहती है,
उसे घर कहते हैं।

जहाँ रोज होम-हवन होता है,
उसे HOME कहते हैं।

जहाँ हौसला मिलता है,
उसे HOUSE कहते हैं।

जो हवादार होती है,
उसे हवेली कहते हैं।

जो करोड़ों खर्च कर बनाई जाए,
उसे कोठी कहते हैं।

जहाँ दीवारों के भी कान होते हैं,
उसे मकान कहते हैं।

जहाँ नींद बढ़िया आती है,
वो झोपड़ी कहलाती है।

और
.
.
.
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.
.
.
.
जहाँ कर्ज की किश्त भरते भरते लोग
खड़े से आड़े होजाते हैं,
उसे FLAT कहते हैं।

35 + उम्र के मित्रो के लिए

35 + उम्र के मित्रो के लिए एक कविता जरूर पड़े

जीवन में पैतीस पार का मर्द........

कैसा होता है ?

थोड़ी सी सफेदी कनपटियों के पास,

खुल रहा हो जैसे आसमां बारिश के बाद,

जिम्मेदारियों के बोझ से झुकते हुए कंधे,

जिंदगी की भट्टी में खुद को गलाता हुआ,

अनुभव की पूंजी हाथ में लिए,

परिवार को वो सब देने की जद्दोजहद में,

जो उसे नहीं मिल पाया था,

बस बहे जा रहा है समय की धारा में,

एक खूबसूरत सी बीवी,

दो प्यारे से बच्चे,

पूरा दिन दुनिया से लड़ कर थका हारा,

रात को घर आता है, सुकून की तलाश में,

लेकिन क्या मिल पाता है सुकून उसे,

दरवाजे पर ही तैयार हैं बच्चे,

पापा से ये मंगाया था, वो मंगाया था,

नहीं लाए तो क्यों नहीं लाए,

लाए तो ये क्यों लाए वो क्यों नहीं लाए,

अब वो क्या कहे बच्चों से,

कि जेब में पैसे थोड़े कम थे,

कभी प्यार से, कभी डांट कर,

समझा देता है उनको,

एक बूंद आंसू की जमी रह जाती है,

आँख के कोने में,

लेकिन दिखती नहीं बच्चों को,

उस दिन दिखेगी उन्हें, जब वो खुद, बन जाएंगे माँ बाप अपने बच्चों के,

खाने की थाली में दो रोटी के साथ,

परोस दी हैं पत्नी ने दस चिंताएं,

कभी,

तुम्हीं नें बच्चों को सर चढ़ा रखा है,

कुछ कहते ही नहीं,

कभी,

हर वक्त डांटते ही रहते हो बच्चों को,

कभी प्यार से बात भी कर लिया करो,

लड़की सयानी हो रही है,

तुम्हें तो कुछ दिखाई ही नहीं देता,

लड़का हाथ से निकला जा रहा है,

तुम्हें तो कोई फिक्र ही नहीं है,

पड़ोसियों के झगड़े, मुहल्ले की बातें,

शिकवे शिकायतें दुनिया भर की,

सबको पानी के घूंट के साथ,

गले के नीचे उतार लेता है,

जिसने एक बार हलाहल पान किया,

वो सदियों नीलकंठ बन पूजा गया,

यहाँ रोज़ थोड़ा थोड़ा विष पीना पड़ता है,

जिंदा रहने की चाह में,

फिर लेटते ही बिस्तर पर,

मर जाता है एक रात के लिए,

क्योंकि

सुबह फिर जिंदा होना है,

काम पर जाना है,

कमा कर लाना है,

ताकि घर चल सके,....
ताकि घर चल सके.....
ताकि घर चल सके।।।।

35 + उम्र के मित्रो के लिए

35 + उम्र के मित्रो के लिए एक कविता जरूर पड़े

जीवन में पैतीस पार का मर्द........

कैसा होता है ?

थोड़ी सी सफेदी कनपटियों के पास,

खुल रहा हो जैसे आसमां बारिश के बाद,

जिम्मेदारियों के बोझ से झुकते हुए कंधे,

जिंदगी की भट्टी में खुद को गलाता हुआ,

अनुभव की पूंजी हाथ में लिए,

परिवार को वो सब देने की जद्दोजहद में,

जो उसे नहीं मिल पाया था,

बस बहे जा रहा है समय की धारा में,

एक खूबसूरत सी बीवी,

दो प्यारे से बच्चे,

पूरा दिन दुनिया से लड़ कर थका हारा,

रात को घर आता है, सुकून की तलाश में,

लेकिन क्या मिल पाता है सुकून उसे,

दरवाजे पर ही तैयार हैं बच्चे,

पापा से ये मंगाया था, वो मंगाया था,

नहीं लाए तो क्यों नहीं लाए,

लाए तो ये क्यों लाए वो क्यों नहीं लाए,

अब वो क्या कहे बच्चों से,

कि जेब में पैसे थोड़े कम थे,

कभी प्यार से, कभी डांट कर,

समझा देता है उनको,

एक बूंद आंसू की जमी रह जाती है,

आँख के कोने में,

लेकिन दिखती नहीं बच्चों को,

उस दिन दिखेगी उन्हें, जब वो खुद, बन जाएंगे माँ बाप अपने बच्चों के,

खाने की थाली में दो रोटी के साथ,

परोस दी हैं पत्नी ने दस चिंताएं,

कभी,

तुम्हीं नें बच्चों को सर चढ़ा रखा है,

कुछ कहते ही नहीं,

कभी,

हर वक्त डांटते ही रहते हो बच्चों को,

कभी प्यार से बात भी कर लिया करो,

लड़की सयानी हो रही है,

तुम्हें तो कुछ दिखाई ही नहीं देता,

लड़का हाथ से निकला जा रहा है,

तुम्हें तो कोई फिक्र ही नहीं है,

पड़ोसियों के झगड़े, मुहल्ले की बातें,

शिकवे शिकायतें दुनिया भर की,

सबको पानी के घूंट के साथ,

गले के नीचे उतार लेता है,

जिसने एक बार हलाहल पान किया,

वो सदियों नीलकंठ बन पूजा गया,

यहाँ रोज़ थोड़ा थोड़ा विष पीना पड़ता है,

जिंदा रहने की चाह में,

फिर लेटते ही बिस्तर पर,

मर जाता है एक रात के लिए,

क्योंकि

सुबह फिर जिंदा होना है,

काम पर जाना है,

कमा कर लाना है,

ताकि घर चल सके,....
ताकि घर चल सके.....
ताकि घर चल सके।।।।

मशवरा तो खूब देते हो

..
शाम को थक कर टूटे झोपड़े में सो जाता है वो मजदूर, जो शहर में ऊंची इमारतें बनाता है....

मुसीबत में अगर मदद मांगो तो सोच कर मागना क्योकि मुसीबत थोड़ी देर की होती है और एहसान जिंदगी भर का.....

मशवरा तो खूब देते हो
"खुश रहा करो" कभी कभी वजह भी दे दिया करो...

अमीर की बेटी पार्लर में जितना दे आती है,
उतने में गरीब की बेटी अपने ससुराल चली जाती है....

कल एक इन्सान रोटी मांगकर ले गया और करोड़ों कि दुआयें दे गया, पता ही नहीँ चला की, गरीब वो था की मैं....

दीदार की तलब हो तो नजरें जमाये रखना ..क्यों कि 'नकाब' हो या 'नसीब'
सरकता जरूर है''...

गठरी बाँध बैठा है अनाड़ी
साथ जो ले जाना था वो कमाया ही नहीं

मैं उस किस्मत का सबसे पसंदीदा खिलौना हूँ, वो रोज़ जोड़ती है मुझे फिर से तोड़ने के लिए....

जिस घाव से खून नहीं निकलता, समझ लेना वो ज़ख्म किसी अपने ने ही दिया है..

बचपन भी कमाल का था
खेलते खेलते चाहें छत पर सोयें या ज़मीन पर, आँख बिस्तर पर ही खुलती थी...

हर नई चीज अच्छी होती है लेकिन दोस्त पुराने ही अच्छे होते है....

ए मुसीबत जरा सोच के आन मेरे करीब कही मेरी माँ की दुवा तेरे लिए मुसीबत ना बन जाये....

खोए हुए हम खुद हैं, और ढूंढते भगवान को हैं...

अहंकार दिखा के किसी रिश्ते को तोड़ने से अच्छा है की,माफ़ी मांगकर वो रिश्ता निभाया जाये....

जिन्दगी तेरी भी, अजब परिभाषा है..सँवर गई तो जन्नत, नहीं तो सिर्फ तमाशा है...

खुशीयाँ तकदीर में होनी चाहिये, तस्वीर मे तो हर कोई मुस्कुराता है...

अहसास इश्क ए हक़ीक़ी का सब से जुदा देखा, इन्सान ढ़ूँढें मँदिर मस्जिद मैंने हर रूह में ख़ुदा देखा..

ज़िंदगी भी विडियो गेम सी हो गयी है साला एक लैवल क्रॉस करो तो अगला लैवल और मुश्किल आ जाता हैं.....

इतनी चाहत तो लाखो
रु पाने की भी नही होती, जितनी बचपन की तस्वीर देखकर बचपन में जाने की होती है.......

हम तो पागल हैं शौक़-ए-शायरी के नाम पर ही दिल की बात कह जाते हैं और कई इन्सान गीता पर हाथ रख कर भी सच नहीं कह पाते है…

हमेशा छोटी छोटी गलतियों से बचने की कोशिश किया करो , क्योंकि इन्सान पहाड़ो से नहीं पत्थरों से ठोकर खाता है ..

इन्सान कहते है की मेरे दोस्त कम है लेकीन, वो नही जानते की मेरे दोस्तो मे कितना दम हैं.....

वफ़ा ढूढने निकला


वफ़ा ढूढने निकला था
ग़ालिब

WiFi मिल गया , उधर ही बैठ गया..!!

बुधवार, 2 सितंबर 2015

अपना "रंग" छोड़ जाते है  

रिश्ते हमेशा "तितली" जैसे होते है

जोर से पकड़ो तो "मर" जाते है
छोड़ दो तो "उड़" जाते हैं

और प्यार से पकड़ो तो उँगलियों  पर
अपना "रंग" छोड़ जाते है  

मुझे तैरने दे या फिर बहना सिखा दे

"मुझे तैरने दे या फिर बहना सिखा दे |
अपनी रजा में अब तू रहना सिखा दे ||
मुझे शिकवा ना हो कभी भी किसी से
|
हे ईश्वर !! मुझे सुःख और दुःख के पार जीना सिखा दे ||"

मंगलवार, 1 सितंबर 2015

शख्सियत, ए 'लख्ते-जिगर, कहला न सका

शख्सियत, ए 'लख्ते-जिगर, कहला न सका ।
जन्नत,, के धनी "पैर,, कभी सहला न सका ।
.
दुध, पिलाया उसने छाती से निचोड़कर,
मैं 'निकम्मा, कभी 1 ग्लास पानी पिला न सका ।
.
बुढापे का "सहारा,, हूँ 'अहसास' दिला न सका
पेट पर सुलाने वाली को 'मखमल, पर सुला न सका ।
.
वो 'भूखी, सो गई 'बहू, के 'डर, से एकबार मांगकर,
मैं "सुकुन,, के 'दो, निवाले उसे खिला न सका ।
.
नजरें उन 'बुढी, "आंखों,, से कभी मिला न सका ।
वो 'दर्द, सहती रही में खटिया पर तिलमिला न सका ।
.
जो हर रोज 'ममता, के रंग पहनाती रही मुझे,
उसे दीवाली पर दो 'जोड़, कपडे सिला न सका ।
.
"बिमार बिस्तर से उसे 'शिफा, दिला न सका ।
'खर्च के डर से उसे बडे़ अस्पताल, ले जा न सका ।
.
"माँ" के बेटा कहकर 'दम, तौडने बाद से अब तक सोच रहा हूँ,
'दवाई, इतनी भी "महंगी,, न थी के मैं ला ना सका ।
माँ

सोमवार, 31 अगस्त 2015

सारा खेल दोस्ती का है

हरिवंशराय बच्चनजी की सुन्दर कविता---

अगर बिकी तेरी दोस्ती...
तो पहले ख़रीददार हम होंगे..!
तुझे ख़बर न होगी तेरी क़ीमत ..
पर तुझे पाकर सबसे अमीर हम होंगे..!!
दोस्त साथ हो तो रोने में भी शान है..
दोस्त ना हो तो महफिल भी समशान है!

सारा खेल दोस्ती का है ऐ मेरे दोस्त,
वरना जनाजा और बारात एक ही समान है !! ....

सारे दोस्तो को सर्मप्रित...

शनिवार, 29 अगस्त 2015

इन्सानी कुत्ते

कोर्ट में एक अजीब मुकदमा आया
एक सिपाही एक कुत्ते को बांध कर लाया
सिपाही ने जब कटघरे में आकर कुत्ता खोला
कुत्ता रहा चुपचाप, मुँह से कुछ ना बोला..!
नुकीले दांतों में कुछ खून-सा नज़र आ रहा था
चुपचाप था कुत्ता, किसी से ना नजर मिला रहा था
फिर हुआ खड़ा एक वकील ,देने लगा दलील
बोला, इस जालिम के कर्मों से यहाँ मची तबाही है
इसके कामों को देख कर इन्सानियत घबराई है
ये क्रूर है, निर्दयी है, इसने तबाही मचाई है
दो दिन पहले जन्मी एक कन्या, अपने दाँतों से खाई है
अब ना देखो किसी की बाट
आदेश करके उतारो इसे मौत के घाट
जज की आँख हो गयी लाल
तूने क्यूँ खाई कन्या, जल्दी बोल डाल
तुझे बोलने का मौका नहीं देना चाहता
लेकिन मजबूरी है, अब तक तो तू फांसी पर लटका पाता
जज साहब, इसे जिन्दा मत रहने दो
कुत्ते का वकील बोला, लेकिन इसे कुछ कहने तो दो
फिर कुत्ते ने मुंह खोला ,और धीरे से बोला
हाँ, मैंने वो लड़की खायी है
अपनी कुत्तानियत निभाई है
कुत्ते का धर्म है ना दया दिखाना
माँस चाहे किसी का हो, देखते ही खा जाना
पर मैं दया-धर्म से दूर नही
खाई तो है, पर मेरा कसूर नही
मुझे याद है, जब वो लड़की छोरी कूड़े के ढेर में पाई थी
और कोई नही, उसकी माँ ही उसे फेंकने आई थी
जब मैं उस कन्या के गया पास
उसकी आँखों में देखा भोला विश्वास
जब वो मेरी जीभ देख कर मुस्काई थी
कुत्ता हूँ, पर उसने मेरे अन्दर इन्सानियत जगाई थी
मैंने सूंघ कर उसके कपड़े, वो घर खोजा था
जहाँ माँ उसकी थी, और बापू भी सोया था
मैंने भू-भू करके उसकी माँ जगाई
पूछा तू क्यों उस कन्या को फेंक कर आई
चल मेरे साथ, उसे लेकर आ
भूखी है वो, उसे अपना दूध पिला
माँ सुनते ही रोने लगी
अपने दुख सुनाने लगी
बोली, कैसे लाऊँ अपने कलेजे के टुकड़े को
तू सुन, तुझे बताती हूँ अपने दिल के दुखड़े को
मेरी सासू मारती है तानों की मार
मुझे ही पीटता है, मेरा भतार
बोलता है लङ़का पैदा कर हर बार
लङ़की पैदा करने की है सख्त मनाही
कहना है उनका कि कैसे जायेंगी ये सारी ब्याही
वंश की तो तूने काट दी बेल
जा खत्म कर दे इसका खेल
माँ हूँ, लेकिन थी मेरी लाचारी
इसलिए फेंक आई, अपनी बिटिया प्यारी
कुत्ते का गला भर गया
लेकिन बयान वो पूरे बोल गया....!
बोला, मैं फिर उल्टा आ गया
दिमाग पर मेरे धुआं सा छा गया
वो लड़की अपना, अंगूठा चूस रही थी
मुझे देखते ही हंसी, जैसे मेरी बाट में जग रही थी
कलेजे पर मैंने भी रख लिया था पत्थर
फिर भी काँप रहा था मैं थर-थर
मैं बोला, अरी बावली, जीकर क्या करेगी
यहाँ दूध नही, हर जगह तेरे लिए जहर है, पीकर क्या करेगी
हम कुत्तों को तो, करते हो बदनाम
परन्तु हमसे भी घिनौने, करते हो काम
जिन्दी लड़की को पेट में मरवाते हो
और खुद को इंसान कहलवाते हो
मेरे मन में, डर कर गयी उसकी मुस्कान
लेकिन मैंने इतना तो लिया था जान
जो समाज इससे नफरत करता है
कन्याहत्या जैसा घिनौना अपराध करता है
वहां से तो इसका जाना अच्छा
इसका तो मर जान अच्छा
तुम लटकाओ मुझे फांसी, चाहे मारो जूत्ते
लेकिन खोज के लाओ, पहले वो इन्सानी कुत्ते
लेकिन खोज के लाओ, पहले वो इन्सानी कुत्ते ..!!

शुक्रवार, 28 अगस्त 2015

परिंदो को नही दी जाती  तालीम 

परिंदो को नही दी जाती 
तालीम उड़ानों  की,
वो  खुद  ही  तय  करते  है
मंजिल  आसमानों  की!

रखता  है   जो  हौसला
आसमान  को छूने  का!
उसको  नही  होती 
परवाह  गिर जाने  की!

दुनियाँ की हर चीज
ठोकर लगने से टूट जाया करती है
एक कामयाबी ही है
जो ठोकर खा के ही मिलती है!!

इस राखी पर भैया

इस राखी पर भैया ,मुझे बस
यही तोहफा देना तुम ,
रखोगे ख्याल माँ-पापा का , बस यही इक
वचन देना तुम ,
बेटी हूं मैं , शायद ससुराल से रोज़ न आ
पाऊंगी ,
जब भी पीहर आऊंगी , इक मेहमान बनकर
आऊंगी ,
पर वादा है, ससुराल में संस्कारों से,
पीहर की शोभा बढाऊंगी ,
तुम तो बेटे हो , इस बात को न
भुला देना तुम ,
रखोगे ख्याल माँ -पापा का बस यही वचन
देना तुम ,
मुझे नहीं चाहिये सोना-चांदी , न चाहिये
हीरे-मोती ,
मैं इन सब चीजों से कहां सुःख पाऊंगी
देखूंगी जब माँ-पापा को पीहर में खुश
तो ससुराल में चैन से मैं भी जी पाऊंगी
अनमोल हैं ये रिश्ते , इन्हें यूं ही न
गंवा देना तुम ,
रखोगे ख्याल माँ-पापा का , बस
यही वचन देना तुम ,
वो कभी तुम पर यां भाभी पर
गुस्सा हो जायेंगे ,
कभी चिड़चिड़ाहट में कुछ कह भी जायेंगे ,
न गुस्सा करना , न पलट के कुछ कहना तुम ,
उम्र का तकाजा है, यह
भाभी को भी समझा देना तुम ,
इस राखी पर भैया मुझे बस
यही तोहफा देना तुम ,
रखोगे ख्याल माँ-पापा का , बस
यही वचन देना तुम ।

पौरुष की नीलामी कर दें,आरक्षण की मांग करें

आओ मिलकर आग लगाएं,नित नित नूतन स्वांग करें,
पौरुष की नीलामी कर दें,आरक्षण की मांग करें,

पहले से हम बंटे हुए हैं,और अधिक बंट जाएँ हम,
100 करोड़ हिन्दू है,मिलकर इक दूजे को खाएं हम,

देश मरे भूखा चाहे पर अपना पेट भराओ जी,
शर्माओ मत,भारत माँ के बाल नोचने आओ जी,

तेरा हिस्सा मेरा हिस्सा,किस्सा बहुत पुराना है,
हिस्से की रस्साकसियों में भूल नही ये जाना है,

याद करो ज़मीन के हिस्सों पर जब हम टकराते थे,
गज़नी कासिम बाबर मौका पाते ही घुस आते थे

अब हम लड़ने आये हैं आरक्षण वाली रोटी पर,
जैसे कुत्ते झगड़ रहे हों कटी गाय की बोटी पर,

हमने कलम किताब लगन को दूर बहुत ही फेंका है,
नाकारों को खीर खिलाना संविधान का ठेका है,

मैं भी पिछड़ा,मैं भी पिछड़ा,कह कर बनो भिखारी जी,
ठाकुर पंडित बनिया सब के सब कर लो तैयारी जी,

जब पटेल के कुनबों की थाली खाली हो सकती है,
कई राजपूतों के घर भी कंगाली हो सकती है,

बनिए का बेटा रिक्शे की मज़दूरी कर सकता है,
और किसी वामन का बेटा भूखा भी मर सकता है,

आओ इन्ही बहानों को लेकर,सड़कों पर टूट पड़ो,
अपनी अपनी बिरादरी का झंडा लेकर छूट पड़ो,

शर्म करो,हिन्दू बनते हो,नस्लें तुम पर थूंकेंगी,
बंटे हुए हो जाति पंथ में,ये ज्वालायें फूकेंगी,

मैं पटेल हूँ मैं गुर्जर हूँ,लड़ते रहिये शानों से,
फिर से तुम जूते खाओगे गजनी की संतानो से,

ऐसे ही हिन्दू समाज के कतरे कतरे कर डालो,
संविधान को छलनी कर के,गोबर इसमें भर डालो,

राम राम करते इक दिन तुम अस्सलाम हो जाओगे,
बंटने पर ही अड़े रहे तो फिर गुलाम हो जाओगे

लफ्ज़ वही हैं

"लफ्ज़ वही हैं, माईने बदल गये हैं; 
किरदार वही, अफ़साने बदल गये हैं; 
उलझी ज़िन्दगी को सुलझाते सुलझाते; 
ज़िन्दगी जीने के बहाने बदल गये हैं.
"

बुधवार, 26 अगस्त 2015

मौत को करीब से देखा....

सपने मे अपनी मौत को करीब से देखा....

कफ़न में लिपटे तन जलते अपने शरीर को देखा.....

खड़े थे लोग हाथ बांधे एक कतार में...

कुछ थे परेशान कुछ उदास थे .....

पर कुछ छुपा रहे अपनी मुस्कान थे..

दूर खड़ा देख रहा था मैं ये सारा मंजर.....

.....तभी किसी ने हाथ बढा कर मेरा हाथ थाम लिया ....

और जब देखा चेहरा उसका तो मैं बड़ा हैरान था.....

हाथ थामने वाला कोई और नही...मेरा भगवान था...

चेहरे पर मुस्कान और नंगे पाँव था....

जब देखा मैंने उस की तरफ जिज्ञासा भरी नज़रों से.....

तो हँस कर बोला....
"तूने हर दिन दो घडी जपा मेरा नाम था.....
आज प्यारे उसका क़र्ज़ चुकाने आया हूँ...।"

रो दिया मै.... अपनी बेवक़ूफ़ियो पर तब ये सोच कर .....

जिसको दो घडी जपा
वो बचाने आये है...
और जिन मे हर घडी रमा रहा
वो शमशान पहुचाने आये है....

तभी खुली आँख मेरी बिस्तर पर विराजमान था.....
कितना था नादान मैं हकीकत से अनजान था....

ए ज़िन्दगी तेरा ये फ़लसफ़ा

" समझ ना आया ए ज़िन्दगी तेरा ये फ़लसफ़ा
एक तरफ़ कहते हैं सब्र का फल मीठा है
और
दूसरी तरफ़ कहते हैं वक्त किसी का इंतज़ार नहीं
करता".....

सोमवार, 24 अगस्त 2015

भाई तो आखिर भाई होता ह

भाई पर कविता
भाई तो आखिर भाई होता है
माँ बाप की आन होता है।
अपनी बहन की शान होता है।
अपनी बीबी की जान होता है।
अपने बच्चों की मुस्कान होता है।
भाई तो आखिर भाई होता है।
अपने माँ बाप का दुलार होता है।
अपनी बहन का प्यार होता है।
अपनी बीबी का इंतजार होता है।
अपने बच्चों का उपहार होता है।
भाई तो आखिर भाई होता है।
अपने माँ बाप की बीमारी में श्रवन कुमार होता है।
अपनी बहन की बिदाई में सुकुमार होता है।
अपनी शादी में बीबी के सपनो का राजकुमार होता है।
अपने बच्चों के जन्म पर जिम्मेदारी का अहसास होता है।
भाई तो आखिर भाई होता है।

रविवार, 23 अगस्त 2015

हर हर महादेव ओम नमः शिवाय

हाथ त्रिशूल, गले मुण्डमाल
भभूत लगा, शिव सुंदर सौहे
बाघ चर्म कर धारण तन पै
कैलाश पति मन गिरजा मौहै
सरदार सांदू
हर हर महादेव 
ओम नमः शिवाय

जिस राह पर.. हर बार मुझेे....

जिस राह पर.. हर बार मुझेे....
अपना कोई.. छलता रहा...

फिर भी...न जाने क्यूँ मैं..
उसी राह ही... चलता रहा;

सोचा बहुत.. इस बार..
रोशनी नहीं.. धुँआ दूँगा

लेकिन... दीपक हुँ  फ़ितरत से..
जलता रहा..जलता ही रहा...

दु:ख सू कीकर दाझगी

दु:ख सू कीकर दाझगी,अन्तै हो उदियास|
काया सारी कलपगी,ओ होवै आभास||

मन नै कीकर मारियौ,पिव नहीं है पास|
तन सू जद थू तेवड़ी,आई छोड अवास||

सोच रही खुद बैठ

सोच रही खुद बैठ झरोख करूँ किम नाश निज देह सखी री
रूप अनूप बड़ो अनमोल रहो किम कारण देऊ छोड़ सखी री
साजन केश संवार रह्यो उनकी अंगुली अभी याद सखी री
राख रही निज प्राण विलोकत आज नही अब तजु मैं सखी री

नवयुवती छज्जे पर बैठी

प्रसंग है एक नवयुवती छज्जे पर बैठी है, वह उदास है, उसकी मुख मुद्रा देखकर लग रहा है कि जैसे वह छत से कूदकर आत्महत्या करने वाली है।

विभिन्न कवियों से अगर इस पर लिखने को कहा जाता तो वो कैसे लिखते

मैथिली शरण गुप्त
अट्टालिका पर एक रमिणी अनमनी सी है अहो
किस वेदना के भार से संतप्त हो देवी कहो?
धीरज धरो संसार में, किसके नही है दुर्दिन फिरे
हे राम! रक्षा कीजिए, अबला न भूतल पर गिरे।

काका हाथरसी
गोरी बैठी छत पर, कूदन को तैयार
नीचे पक्का फर्श है, भली करे करतार
भली करे करतार,न दे दे कोई धक्का
ऊपर मोटी नार, नीचे पतरे कक्का
कह काका कविराय, अरी मत आगे बढना
उधर कूदना मेरे ऊपर मत गिर पडना।

श्याम नारायण पांडे
ओ घमंड मंडिनी, अखंड खंड मंडिनी
वीरता विमंडिनी, प्रचंड चंड चंडिनी
सिंहनी की ठान से, आन बान शान से
मान से, गुमान से, तुम गिरो मकान से
तुम डगर डगर गिरो, तुम नगर नगर गिरो
तुम गिरो अगर गिरो, शत्रु पर मगर गिरो।

गोपाल दास नीरज
हो न उदास रूपसी, तू मुस्काती जा ।
मौत में भी जिन्दगी के कुछ फूल खिलाती जा ।।
जाना तो हर एक को है, एक दिन जहान से ।
जाते जाते मेरा, एक गीत गुनगुनाती जा ।।

सांपों के मुकद्दर मे

सांपों के मुकद्दर में
                वो ज़हर कहां,
        जो इंसान आजकल सिर्फ
           बातों में ही उगल रहा है !
        साँप तो कोने में बैठा
                    हँस रहा है !
          क्योकि
           इन्सान ही आजकल
              इन्सान को डंस रहा है।।           
नागपंचमी की शुभकामनाये

खुश्बू का पैगाम

फूल इसलिए अच्छे,
           की खुश्बू का पैगाम देते है।
कांटे इसलिए अच्छे,
             की दामन थाम लेते है।
दोस्त इसलिए अच्छे, 
           कि वो मुझ पर जान देते है।
और दुश्मनों को,
                      कैसे ख़राब कह दूँ।
वो ही तो है,
जो हर महफ़िल में मेरा नाम लेते है।
       शुभ प्रभात

लड़की का शव

पहला दृश्य --
एक कवि नदी के किनारे खड़ा था !
तभी वहाँ से
एक लड़की का शव नदी में तैरता हुआ जा रहा था तो तभी
कवि ने उस शव से पूछा ----

कौन हो तुम ओ सुकुमारी,
बह रही नदियां के जल में ?

कोई तो होगा तेरा अपना,
मानव निर्मित इस भू-तल मे !

किस घर की तुम बेटी हो,
किस क्यारी की कली हो तुम ?

किसने तुमको छला है बोलो,
क्यों दुनिया छोड़ चली हो तुम ?

किसके नाम की मेंहदी बोलो,
हांथो पर रची है तेरे ?

बोलो किसके नाम की बिंदिया,
मांथे पर लगी है तेरे ?

लगती हो तुम राजकुमारी,
या देव लोक से आई हो ?

उपमा रहित ये रूप तुम्हारा,
ये रूप कहाँ से लायी हो?
..........

दूसरा दृश्य----
कवि की बाते सुनकर लड़की की आत्मा बोलती
है.....

कवी राज मुझ को क्षमा करो,
गरीब पिता की बेटी हुँ !

इसलिये मृत मीन की भांती,
जल धारा पर लेटी हुँ !

रूप रंग और सुन्दरता ही,
मेरी पहचान बताते है !

कंगन,चूड़ी,बिंदी,मेंहदी,
सुहागन मुझे बनाते है !

पित के सुख को सुख समझा,
पित के दुख में दुखी थी मैं !

जीवन के इस तन्हा पथ पर,
पति के संग चली थी मैं !

पति को मेने दीपक समझा,
उसकी लौ में जली थी मैं !

माता-पिता का साथ छोड
उसके रंग में ढली थी मैं !

पर वो निकला सौदागर ,
लगा दिया मेरा भी मोल !

दौलत और दहेज़ की खातिर
पिला दिया जल में विष घोल !

दुनिया रुपी इस उपवन में,
छोटी सी एक कली थी मैं !

जिस को माली समझा ,
उसी के द्वारा छली थी मैं !

इश्वर से अब न्याय मांगने,
शव शैय्या पर पड़ी हूँ मैं !

दहेज़ की लोभी इस संसार मैं,
दहेज़ की भेंट छड़ी हूँ में !

दहेज़ की भेंट चडी हूँ मैं !!

.....................

{[<बेटियां शीतल हवा होती है।। इन्हें बचा कर रखे>]}

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